
बिहार के चंपारण के अहुना मटन को अब राष्ट्रीय पहचान मिल सकता है। चंपारण मटन को जीआई टैग के लिए पूर्वी चम्पारण के डीएम एक कमेटी का गठन किया है, जो अपना प्रस्ताव प्रशासन के माध्यम से सरकार तक पहुंचाएगी।
अहुना मटन को मिलेगा जीआई टैग !
चंपारण मटन को भोजन के रूप में अहुना, हांडी व बटलोही मीट भी कहा जाता है। इस डीस की जड़े पूर्वी चंपारण से सटे नेपाल से भी जुटता है। हांडी मटन नेपाल के सीमावर्ती पूर्वी चंपारण के घोड़ासहन से शुरू होकर मोतिहारी में व्यापक रूप पकड़ा है, जहां बिहार ही नहीं दूसरे प्रदेश के लोग भी आकर मटन का स्वाद लेते हैं। नेपाल में यह मटन खुले बर्तन में बनता है, जबकि चंपारण में इसे मिट्टी के वर्तन में मिट्टी ढक्कन से ढककर उस पर आटा लगाकर बनाया जाता है, जिसके जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) के लिए जिला प्रशासन सक्रिय है।
11 सदस्यीय कमेटी में अधिकारी व व्यवसायी शामिल
चंपारण के अहुना मटन को जीआई टैग के लिए पूर्वी चम्पारण के डीएम शीर्षत कपिल अशोक ने 19 जुलाई को 11 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है, जो अपना प्रस्ताव प्रशासन के माध्यम से सरकार तक पहुंचाएगी। जीआई टैग प्रस्ताव बनाने के लिए जिन 11 सदस्यीय कमेटी का डीएम शीर्षत कपिल अशोक ने किया है, उसमें अधिकारी, व्यवसायी, होटल संचालक और ढाबा से जुड़े लोग है, इसमें मुख्य रूप से अपर समाहर्ता राजकिशोर लाल, अंकेक्षण पदाधिकारी सुधीर कुमार, एसडीओ सिकरहना, प्राचार्य एमएस कॉलेज, श्रम अधीक्षक पूर्वी चंपारण, होटल संचालक सुनिल कुमार जायसवाल, रेस्टोरेंट संचालक अंगद सिंह, बलुआ विजडम होटल के राजीव कुमार, चेंबर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष सुधीर अग्रवाल, चेंबर ऑफ कामर्स रक्सौल के अध्यक्ष अरुण गुप्ता और बलुआ व्यवसायी संघ के अध्यक्ष का नाम शामिल किया गया है।
चंपारण मीट एक ब्रांड का रूप ले चुका है
ध्यान रहे कि जीआई टैग (GI Tag) उस उत्पाद की गुणवत्ता व उसकी विशेषता को दर्शाता है, अगर चंपारण के अहुना मटन को जीआई टैग मिल जाता है तो चंपारण मटन ढाबा, रेस्टोरेंट तथा होटल के माध्यम से लोगों को रोजगार दिलाएगा और लोगों के पलायन पर रोक लगेगी। बिहार व देश के बड़े शहरों में भी चंपारण मीट एक ब्रांड का रूप ले चुका है, जहां दुकानों पर कारीगर भले ही लोकल हो, लेकिन चंपारण मीट का बोर्ड मिल जाएगा। अहुना मटन को अगर जीआई टैग मिलता है तो दुकानदारों, रेस्टोरेंट मालिकों, मीट शॉप दुकानदारों की कमायी बढ़ेगी और यहां के मीट के बारे में लोगों को समझाया जा सकेगा, बेहतर ढंग से मीट काटने, स्वच्छता का ध्यान रखने, पैकेजिंग करने व मांस के लिए स्वस्थ्य पशुओं का चयन करने आदि का भी प्रशिक्षण दिया जाएगा।