Corona के एक और खतरनाक C.1.2 वेरिएंट की दस्तक, Vaccine को भी दे सकता है चकमा

दुनिया के तमाम देश अभी भी कोरोना से जूझ रहे हैं, वहीं भारत में तीसरी लहर की आशंका भी जताई जा रही है, इन सबके बीच दक्षिण अफ्रीका समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना का एक और खतरनाक C.1.2 वेरिएंट सामने आया है।

C.1.2 वेरिएंट वैक्सीन को भी दे सकता है चकमा
वैश्विक महामारी कोरोना का एक और खतरनाक C.1.2 वेरिएंट दक्षिण अफ्रीका समेत दुनिया के कई देशों में सामने आया है। कोरोना का C.1.2 वेरिएंट पहले से ज्यादा संक्रामक है और यह वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा को भी चकमा दे सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, दक्षिण अफ्रीका में कोरोना की पहली लहर के दौरान मिले वेरिएंट में से C.1 वेरिएंट की तुलना में C.1.2 में ज्यादा बदलाव देखने को मिले हैं, यही वजह है कि इस वेरिएंट को वेरिएंट ऑफ इंट्रेस्टह की श्रेणी में रखा गया है।

C.1.2 वेरिएंट सबसे पहले मई में सामने आया था
दक्षिण अफ्रीका में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिजीज (National Institute for Communicable Diseases, NICD) और क्वाजुलु नैटल रिसर्च इनोवेशन एंड सीक्वेंसिंग प्लैटफॉर्म के वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना का C.1.2 वेरिएंट सबसे पहले मई 2021 में सामने आया था, इसके बाद अगस्त 2021 तक चीन, कांगो, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल और स्विट्जरलैंड में इसके केस देखने को मिले।

C.1.2 वेरिएंट हो सकता है अधिक संक्रामक
वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि दुनिया में अब तक मिले वेरिएंट ऑफ कंसर्न और वेरिएंट ऑफ इंट्रेस्टे की तुलना में C.1.2 में ज्या दा म्यू,टेशन देखने को मिला है, इतना ही नहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वेरिएंट अधिक संक्रामक हो सकता है और ये कोरोना वैक्सीन से मिलने वाले सुरक्षा तंत्र को भी चकमा दे सकता है। इस स्टडी के मुताबिक, दक्षिण अफ्रीका में हर महीने C.1.2 जीनोम की संख्या बढ़ रही है, मई 2021 में जीनोम सिक्वेंसिंग के 0.2 फीसदी से बढ़कर जून 2021 में 1.6 फीसदी तथा जुलाई में 2 फीसदी तक हो गए।

C.1.2 वेरिएंट का म्यूटेशन रेट 41.8 प्रति साल है
स्टडी के मुताबिक, C.1.2 वेरिएंट का म्यूटेशन रेट 41.8 प्रति साल है, यह मौजूदा ग्लोबल म्यूटेशन रेट से दोगुना तेज है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, म्यूटेशन N440K और Y449H वेरिएंट C.1.2 में मिले हैं, ये म्यूटेशन वायरस में बदलाव के साथ-साथ उन्हें एंटीबॉडी और इम्यून रिस्पॉन्स से बचने में मदद करते हैं, ये उन मरीजों में भी देखने को मिला है, जिनमें अल्फा या बीटा वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हुई थी।

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