
देश की राजधानी दिल्ली के कालकाजी मंदिर में पूजा संस्कार कराने का अधिकार एक महिला को मिला है। यह अधिकार दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली के साकेत कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुआ दिया है।
कमलेश शर्मा को मिला पूजा कराने का अधिकार
दिल्ली हाई कोर्ट ने 7 फरवरी को अपने एक अहम फैसले में दिल्ली के कालकाजी मंदिर में एक महिला को पूजा कराने का अधिकार दे दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने यह फैसला दिल्ली के साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज के उस फैसले को बरकरार रखते हुए दिया है, जिसमें कहा गया था कि प्रतिवादी 62 वर्षीय कमलेश शर्मा दिवंगत पिता कालीचरण की कानूनी उत्तराधिकारी और मंदिर में पिता के 1/6 शेयर की हकदार हैं, ऐसे में कमलेश शर्मा अपनी बारी आने पर मंदिर में पूजा सेवा, तहबाजारी और अन्य कलेक्शन करने की हकदार हैं।
कमलेश द्वारा नियुक्त पुजारी पूजा शुरू कर दिया
साकेत कोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया था कि मंदिर संस्कार के तहत अगर पुरुष ही पूजा सेवा कर सकता है तो महिला अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए परिवार के पुरुष को पूजा सेवा के लिए नियुक्त कर सकती है। ध्यान रहे कि दिल्ली के साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज ने अपना फैसला 16 जनवरी, 2021 को दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की बेंच के इस फैसले के बाद कमलेश शर्मा द्वारा नियुक्त पुजारी राकेश भारद्वाज ने 6 फरवरी से पूजा संस्कार शुरू कर दिया है, साथ ही अदालत ने दानपत्र को नियंत्रित करने समेत अन्य निर्देश दिए हैं।
दानपत्र की 1/6 धनराशि कमलेश को मिलेगा
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कोर्ट रिसीवर द्वारा मंदिर के सभी दानपत्रों को लॉक किया जाएगा और चाबी भी उनके पास ही रहेगी, दानपत्रों को कोर्ट रिसीवर के सामने तय किए गए दिन में खोला जाएगा, दानपत्र की धनराशि का 1/6 शेयर वादी कमलेश शर्मा को दिया जाएगा और बाकी धनराशि हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के खाते में रखा जाएगा। हाई कोर्ट पीठ ने यह निर्देश याचिकाकर्ता नीता भारद्वाज द्वारा निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर दिया, अदालत ने 25 फरवरी को होने वाली अगली सुनवाई तक मंदिर परिसर में लगे होर्डिग को हटाने का निर्देश दिया है।
नीता ने दी साकेत कोर्ट के फैसले को चुनौती
याचिकाकर्ता नीता भारद्वाज ने 16 जनवरी, 2021 को साकेत कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है। नीता भारद्वाज ने दलील दी है कि बतौर पुरुष कानूनी उत्तराधिकारी होने के कारण उन्हें पूजा सेवा करने की प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी जाए और वे प्रतिवादी कमलेश शर्मा को उनका 1/6 शेयर दे देंगे, दलील दी गई है कि महिला होने के कारण कमलेश शर्मा को उनकी तरफ से पुजारी नियुक्त करने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।
पहली बार एक महिला का अधिकार लागू
हाई कोर्ट के फैसले के बाद कमलेश शर्मा के वकील रोहित के नागपाल और दीपांशु गाबा ने बताया कि कालकाजी मंदिर मामले में पहली बार एक महिला का अधिकार लागू हुआ है, इस संबंध में हाई कोर्ट ने इससे पहले यूएन भारद्वाज बनाम वाईएन भारद्वाज के मामले में वर्ष 2010 और वर्ष 2015 में भी आदेश दिया था, लेकिन दोनों पक्षों के बीच समझौता होने के कारण आदेश लागू नहीं हो सका था।