
जेएनयू यानि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के 87 फीसदी एमफिल और पीएचडी स्कॉलर्स मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं, जबकि 64.7 फीसदी स्कॉलर्स की स्कॉलरशिप तक रूक गई हैं।
इस सर्वे में JNU के 530 शोद्यार्थियों ने हिस्सा लिया
यह चौंकाने वाला खुलासा जेएनयू के ही तीन रिसर्च स्कॉलर्स द्वारा कोरोना महामारी के चलते शिक्षण संस्थान बंद होने से एमफिल और पीएचडी स्कॉलर्स की दिक्कतों पर शोध में हुआ है। जेएनयू के ये तीन रिसर्च स्कॉलर्स- अलामू आर, सोमाश्री दास और यांगचेन ने कोरोना काल के दौरान छात्रों की स्थिति पर एक ऑनलाइन सर्वे किया है। इस सर्वे में जेएनयू के ही करीब 530 शोद्यार्थियों ने हिस्सा लिया, जिसमें से करीब 41.5 फीसदी छात्र और 58.1 फीसदी छात्राएं शामिल हैं।
ज्यादातर छात्र मानसिक रूप से परेशान
इस शोध में छात्रों को आ रही परेशानी और उनकी मनोदशा पर सवाल पूछे गए थे, जिसमें से ज्यादातर ने अपनी मानसिक परेशानियों का हवाला दिया है। इस सर्वे में सामने आया है कि प्रति 5 में से 4 स्कॉलर्स के पास इस समय रिसर्च वर्क के लिए किताब या संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। जब शिक्षण संस्थान बंद हुए तो वे अपनी किताब, रिसर्च संबंधी अन्य सामान हॉस्टल से नहीं ले जा पाए थे, इस कारण वे पिछले 6 महीनों से अपने शोधकार्यों से दूर हैं।
87 फीसदी छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित
इस सर्वे में सामने आया है कि करीब 87 फीसदी छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। शोध कार्य पूरा न होने से स्कॉलरशिप भी रूक गई है। ऐसे में वे अपने खर्चे तक नहीं निकाल पा रहे हैं। एमफिल और पीएचडी की किताब बहुत महंगी मिलती है, ऐसे में वे उन्हें खरीद तक नहीं सकते हैं, क्योंकि घर में भी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।
महज 13-14 फीसदी छात्र ही अभी कैंपस में हैं
इस शोध में दावा किया गया है कि मार्च में ही अधिकतर स्कॉलर्स अपने गांवों को लौट गए थे। महज 13 से 14 फीसदी छात्र ही कैंपस में हैं। करीब 75.9 फीसदी स्कॉलर्स का कहना है कि वे डिजिटली अपनी थीसिस और शोधकार्य पूरा नहीं कर सकते हैं। करीब 10 फीसदी छात्रों ने कहा कि उनके घर में 4 से 6 घंटे बिजली कट होती है, जबकि 38 फीसदी ने कहा कि वे लगातार बिजली कट से परेशान रहे हैं।