
वैश्विक महामारी कोविड-19 की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार द्वारा 25 मार्च से 31 मई तक 68 दिनों के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन जारी है, इस बीच आज सुप्रीम कोर्ट ने सीएए यानि नागरिकता संशोधन कानून, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली नई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
नई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस भेजा
वैश्विक महामारी कोविड-19 की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार द्वारा 25 मार्च से 31 मई तक 68 दिनों के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन जारी है, इस बीच आज सुप्रीम कोर्ट ने सीएए यानि नागरिकता संशोधन कानून, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली नई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया तथा इसे पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया है। इस नई याचिकाओं में कहा गया है कि मुस्लिम वर्ग को स्पष्ट रूप से अलग रखना संविधान में प्रदत्त मुसलमानों के समता तथा पंथनिरपेक्षता के अधिकारों का हनन है।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई की
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना तथा जस्टिस ऋषिकेश राय की बेंच ने आज वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए इस मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। अदालत ने इसी मुद्दे पर पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ इस याचिकाओं को संलग्न करने का आदेश दिया। ये नई याचिकाएं तमिलनाडु तौहीद जमात, शालिम, ऑल असम लॉ स्टूडेन्ट्स यूनियन, मुस्लिम स्टूडेन्ट्स फेडरेशन तथा सचिन यादव ने दायर की हैं।
सीएए में गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है
ध्यान रहे कि देश में 10 जनवरी, 2020 को अधिसूचित नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के तहत 31 दिसम्बर, 2014 पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर उत्पीड़न के कारण भारत आए गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक- हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग तथा जयराम रमेश ने पहले से ही याचिका दायर की है
नागरिकता संशोधन कानून, 2019 की संवैधानिकता को पहले से ही इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ ही कांग्रेस नेता जयराम रमेश, राजद नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा सहित अनेक लोगों ने चुनौती दे रखी है। इन लोगों का तर्क है कि नागरिकता संशोधन कानून संविधान में प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का हनन करता है तथा धर्म के आधार पर एक वर्ग के लोगों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान गैरकानूनी है।