
दिल्ली हाई कोर्ट ने प्राइवेट एवं सरकारी स्कूलों को निर्देश दिया कि वे गरीब बच्चों को ऑनलाइन कक्षाओं के लिए उपकरण जैसे- मोबाइल, इंटरनेट पैक आदि मुहैया कराएं।
सुविधाओं की कमी से बच्चों को परेशानी
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसी सुविधाओं की कमी से बच्चों को मूलभूत शिक्षा प्राप्त करने में परेशानी होती है। जस्टिस मनमोहन तथा जस्टिस संजीव नरुला की बेंच ने आज यानि 18 सितंबर को कहा कि गैर वित्तपोषित प्राइवेट स्कूल शिक्षा के अधिकार कानून, 2009 के तहत उपकरण और इंटरनेट पैक खरीदने पर आई जो भी उचित लागत हो उसकी प्रतिपूर्ति (रिम्बर्समेंट) सरकार से प्राप्त करने के योग्य हैं, भले ही राज्य यह सुविधा उसके छात्रों को मुहैया नहीं कराती है।
तीन सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश
अदालत ने गरीब और वंचित विद्यार्थियों की पहचान करने और उपकरणों की आपूर्ति करने की सुचारु प्रक्रिया के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश दिया है। समिति में केंद्र सरकार के शिक्षा सचिव या उनके प्रतिनिधि, दिल्ली सरकार के शिक्षा सचिव या प्रतिनिधि और प्राइवेट स्कूलों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। हाई कोर्ट ने कहा कि ने यह भी कहा कि समिति गरीब और वंचित विद्यार्थियों को दिए जाने वाले उपकरण और इंटरनेट पैक के मानक की पहचान करने के लिए मानक परिचालन प्रकिया यानि एसओपी भी बनाएगी।
जस्टिस फॉर ऑल की याचिका पर फैसला
अदालत ने कहा कि इससे सभी गरीब और वंचित विद्यार्थियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण और इंटरनेट पैक में एकरूपता सुनिश्चित हो सकेगी। यह फैसला अदालत ने गैर सरकारी संगठन ‘जस्टिस फॉर ऑल’ की जनहित याचिका पर सुनाया। जस्टिस फॉर ऑल ने एडवोकेट खगेश झा के जरिए दाखिल याचिका में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को गरीब बच्चों को मोबाइल फोन, लैपटॉप या टैबलेट मुहैया कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया था ताकि वे भी कोरोना की वजह से चल रही ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ ले सकें।