कोरोना के कहर से बचने के लिए 6 फीट की दूरी काफी नहीं…जानिए कोरोना वायरस हवा में कितनी दूरी तक फैल सकता है ?

पूरी दुनिया में कहर ढा रहे कोरोना वायरस से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को ही सबसे कारगर उपाय माना जा रहा है, अब तक माना जा रहा था कि दूसरों से 6 फीट की दूरी बनाकर आप कोरोना वायरस को दूर रख सकते हैं, लेकिन एक नई रिसर्च में पता चला है कि यह 6 फीट की दूरी काफी नहीं है।

कोरोना वायरस 20 फीट दूर तक जा सकता है

पूरी दुनिया में कहर ढा रहे कोरोना वायरस से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को ही सबसे कारगर उपाय माना जा रहा है, अब तक माना जा रहा था कि दूसरों से 6 फीट की दूरी बनाकर आप कोरोना वायरस को दूर रख सकते हैं, लेकिन एक नई रिसर्च में पता चला है कि खांसने, छींकने या सांस से निकले ड्रॉपलेट के साथ यह कोरोना वायरस करीब 20 फीट दूर तक जा सकता है।

खांसने, छींकने तथा बात करने से 40 हजार तक ड्रॉपलेट पैदा हो सकते हैं

अमेरिका में सेंटा बारबरा की युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह नोवल कोरोना वायरस अनुकूल परिस्थिति में तीन गुना दूर तक फैल सकता है। पहले हुई एक रिसर्च के हवाले से शोधकर्ताओं ने कहा कि खांसने, छींकने तथा बात करने से 40 हजार तक ड्रॉपलेट पैदा हो सकते हैं, इनकी शुरुआती रफ्तार कुछ मीटर प्रति सेकंड से लेकर 100 मीटर प्रति सेकेंड से भी अधिक हो सकती है, इन अध्ययनों से शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि ड्रॉपलेट का एयरोडाइनेमिक्स तथा वातावरण के साथ उनकी हीट एंड मास एक्सचेंज प्रोसेस से यह तय होता है कि कोरोना वायरस कितनी दूर तक फैलेगा।

रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट के जरिए कोरोना वायरस का प्रसार दो तरीके से होता है

medrXiv में छपे इस शोध के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने सांस से निकलने वाले ड्रॉपलेट की चाल का अलग-अलग तापमान, ह्यूमिडिटी तथा वेंटिलेशन कंडीशन में पता लगाने के लिए एक व्यापक गणितीय मॉडल का सहारा लिया तथा पाया कि रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट के जरिए कोरोना वायरस का प्रसार दो तरीके से होता है- यह नजदीकी संपर्क में ट्रांसमिशन से तथा दूर से एयरोसोल एक्सपोजर से होता है।

हवा में कोरोना वायरस की चाल पर मौसम का प्रभाव हमेशा एक समान नहीं रहता

शोधकर्ताओं का कहना है कि भारी ड्रॉपलेट गुरुत्वाकर्षण के कारण आसपास ही बैठ जाते हैं, जबकि हल्के ड्रॉपलेट तेजी से वाष्पित होकर एयरोसोल पार्टिकल बनाते हैं, जो कोरोना वायरस के साथ घंटों तक हवा में रह सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, हवा में कोरोना वायरस की चाल पर मौसम का प्रभाव हमेशा एक समान नहीं रहता है, कम तापमान तथा ज्यादा उमस में नजदीकी प्रसार होता है, जबकि ज्यादा तापमान और कम उमस में यह छोटे एयरोसोल पार्टिकल बनते हैं।

सीडीसी ने कोरोना से बचने के लिए 6 फीट की सोशल डिस्टेंसिंग की सिफारिश की है

शोधकर्ताओं ने स्टडी में लिखा है कि सीडीसी यानि सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने कोरोना से बचने के लिए 6 फीट की सोशल डिस्टेंसिंग की सिफारिश की है, लेकिन हमारे मॉडल के मुताबिक, कुछ परिस्थितियों में यह दूरी पर्याप्त नहीं है, ठंडे तथा उमस वाले मौसम में ड्रॉपलेट 6 मीटर यानि 19.7 फीट दूर तक जा सकते हैं। शोधकर्ताओं ने साथ ही आगाह किया कि नॉर्दर्न हेमीस्फीयर में गर्मियों में भी कोरोना वायरस के थमने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि दुनिया के इस हिस्से में एयरोसोल ट्रांसमिशन की ज्यादा गुंजाइश है।

भारी ड्रॉपलेट के संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी

शोधकर्ताओं के मुताबिक, गर्म और सूखे मौसम में में रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट आसानी से वाष्पित होकर एयरोसोल पार्टिकल बनाते हैं जो दूर तक संक्रमण फैला सकते हैं, ये पार्टिकल उनके संपर्क में आने वाले इंसानों के फेफड़ों को संक्रमित कर सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, फेस मास्क पहनने से एयरोसोल पार्टिकल के ट्रांसमिशन के खतरे को कम किया जा सकता है, लेकिन भारी ड्रॉपलेट के संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है।

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