अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने मुद्रास्फीति के सबसे तीव्र ब्रेकआउट को ठंडा करने के प्रयास में बुधवार को रातों-रात ब्याज दरों को तीन-चौथाई यानि 0.75 फीसदी बढ़ा दिया। दरअसल, फेडरल रिजर्व के ब्याज दर बढ़ाने से अमेरिकी डॉलर की कीमत बढ़ सकती है और इसके मुकाबले रुपए की कीमत घटने का अंदेशा है, जिसका असर भारत के आयात खर्च पर पड़ेगा।
ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 28 जुलाई 2022 को एक बार फिर ब्याज दरों में इजाफा कर दिया है। अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की है जिसके पीछे बढ़ती महंगाई को काबू में रखने की वजह बताई गई है, हालांकि अमेरिका में ये फैसला वहां के बैंकों के लिए ब्याज दरें बढ़ाने का कारण बनेगा, लेकिन इसका असर भारत पर कैसे आएगा ये आप यहां जान सकते हैं।
भारत के बाजार और करेंसी पर होगा असर
अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों में इजाफा करने का असर भारतीय रुपए पर देखा जाएगा और ये अधिक नीचे जा सकता है, डॉलर के मुकाबले रुपया पहले ही 80 रुपए प्रति डॉलर के सबसे निचले स्तर को छू चुका है, ऐसे में अमेरिकी बैंक का ब्याज दरें बढ़ाने का कदम भारत की मुश्किलें बढ़ा सकता है।
RBI को ब्याज दरें बढ़ाने के लिए सोचना पड़ेगा
दरअसल, आने वाली 3-5 अगस्त 2022 के बीच भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक होने वाली है जिसके बाद आरबीआई क्रेडिट पॉलिसी का ऐलान करेगा, इस बार भी आरबीआई के दरों में बढ़ोतरी करने की आशंका और गहरा गई है, इसके पीछे फेडरल रिजर्व के फैसले को भी कारण माना जा सकता है। अगर आरबीआई ने रेपो रेट समेत अन्य नीतिगत दरें बढ़ाईं तो देश के बैंकों को भी लोन की दरें बढ़ानी पड़ेंगी, इसका सीधा सीधा असर लोन की ईएमआई पर आएगा और वो बढ़ सकती हैं।
भारत का आयात का खर्च भी बढ़ेगा
फेडरल रिजर्व के ब्याज दर बढ़ाने से डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत घट सकती है जिसका असर भारत के आयात खर्च पर पड़ेगा। डॉलर महंगा होने से भारत का इंपोर्ट का खर्च बढ़ेगा और देश का व्यापार घाटा और ज्यादा बढ़ सकता है जिसमें हाल के दिनों में तेजी देखी गई है। देश का व्यापार घाटा बढ़ने से केंद्र सरकार को इस दिशा में कुछ कदम उठाने होंगे जिनका असर कमोडिटी और अन्य वस्तुओं के आयात पर आ सकता है।
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फेडरल रिजर्व के दरें बढ़ाने के बाद से डॉलर के रेट में तेजी आएगी और विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय बाजार की तुलना में अमेरिकी बाजार या डॉलर आधारित बाजारों में निवेश करना ज्यादा फायदे का सौदा होगा, लिहाजा वो भारत के शेयर बाजार की तुलना में यूएस मार्केट या अन्य बाजारों में ज्यादा निवेश करेंगे, भारत में निवेश घटने से देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी कम होने का खतरा पैदा हो जाएगा।