नोएडा के सेक्टर 93ए में स्थित सुपरटेक का ट्विन टावर अब इतिहास बन गया है। धमाके के साथ दोनों इमारतों को गिरा दिया गया है। 30 और 32 मंजिला ये गगनचुंबी इमारतें पलक झपकते ही मिट्टी में मिल गईं। बटन दबाते ही 9-12 सेकंड के अंदर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर फाइनल तामील हो गई।
3700 KG बारूद ने ट्विन टावर को किया ध्वस्त
नोएडा के सेक्टर 93ए में स्थित ट्विन टावर आज 28 अगस्त 2022 को दोपहर ढाई बजे जमींदोज कर दिया गया। पलक झपकते ही 3700 किलोग्राम बारूद ने इन इमारतों को ध्वस्त कर दिया। 13 साल में बनाई गई ये इमारत अनुमान के मुताबिक, करीब 9 से 10 सेकंड के समय में गिर गई। बटन दबाते हुए इमारत में लगाए गए विस्फोटकों में धमाका हुआ और ट्विन टावर पानी के झरने की तरह नीचे गिरे तो धूल का गुबार आसमान तक छा गया। बिल्डिंग गिरते ही चारों ओर मलबे का धुआं ही धुआं देखने को मिला। जब ट्विन टावर को गिराया गया तो यहां मौजूद लोगों को एक तेज धमाका सुनाई दिया, लोगों को धरती कांपते हुई भी महसूस हुई, देखते ही देखते पूरे इलाके में धुएं का गुबार छा गया।
इमारत को ‘वाटरफॉल इम्प्लोजन’ तकनीक से गिराया गया
ट्विन टावर को ‘वाटरफॉल इम्प्लोजन’ तकनीक से गिरा दिया गया। फिलहाल कहीं से किसी तरह के नुकसान की खबर नहीं है। धूल का गुबार हटने के बाद ही आसपास की इमारतों की जांच होगी और यह देखा जाएगा कि क्या कहीं नुकसान भी हुआ है। इन इमारतों को पहले ही खाली करा लिया गया था। आसपास की सड़कें भी पूरी तरह बंद थीं और लॉकडाउन के बाद पहली बार इस तरह का सन्नाटा इलाके में देखा गया। नोएडा एक्सप्रेस-वे पर भी यातायात रोक दिया गया था।
ट्विन टावर को गिराने में 17.55 करोड का खर्च
सुपरटेक ट्विन टावर को गिराने में करीब 17.55 करोड रुपए का खर्च आने का अनुमान है। ट्विन टावर को गिराने का यह खर्च भी बिल्डर कंपनी सुपरटेक ही वहन करेगी। इन दोनों टावरों में कुल 950 फ्लैट्स बने थे और इन्हें बनाने में सुपरटेक ने 200 से 300 करोड़ रुपए खर्च किया था।
बड़ी चुनौती अभी बाकी
ट्विन टावर को गिराए जाने के बाद एक चरण का ही काम पूरा हुआ है। इमारतों को गिराए जाने से करीब 80 हजार टन मलबा निकलेगा, जिन्हें साफ करने में कम से कम 3 महीने का समय लगेगा। पूरे इलाके में धूल की एक मोटी परत जम गई है, जिन्हें युद्धस्तर पर साफ किया जाना है।
इन नियमों की अनदेखी की वजह से गिराए गए टावर
1. नेशनल बिल्डिंग कोड के नियमों की अनदेखी कर टावर को मंजूरी मिली थी।
2. दोनों टावर के बीच की दूरी 16 की बजाय सिर्फ 9 मीटर रखी गई।
3. टावर वहां बने जहां ग्रीन पार्क, चिल्ड्रन पार्क और कॉमर्शियल कॉम्पलेक्स बनने थे। इससे घरों में धूप आनी बंद हो गई थी।